Divine wealth of Shri Ram in Ramcharitmanas
1. परिचय:-
रामचरितमानस, संत तुलसीदास जी द्वारा रचित एक महान काव्य ग्रंथ
है जो भगवान श्रीराम के जीवन एवं उनकी दिव्यता को विस्तारपूर्वक वर्णित करता है। रामचरितमानस में, श्री राम को एक आदर्श पुरुष के रूप में चित्रित किया गया है। तुलसीदास
जी ने इस ग्रंथ में भगवान श्री राम की दैवीय संपदा को विशेष रूप से महत्त्व दिया
है। वे यह सिद्ध करते हैं कि भगवान राम न तो केवल भूतपूर्व राजा थे, बल्कि उनमें अनगिन्ती गुणों का खजाना था।
2. श्री
राम के दैवीय गुण:-
श्री राम के
दैवीय गुणों और श्लोकों को
निम्नलिखित रूप से वर्णित किया जा सकता है:-
1. शौर्य: श्री राम
एक महान योद्धा थे। उन्होंने रावण जैसे महान राक्षस का वध किया। उन्होंने लंका पर आक्रमण किया
और सीता को मुक्त कराया।
बिनु शौर्य जग जीवन अंध ध्वारा, बूझैं
कौटुहल भय बिहवारा।
2.
धैर्य: श्री राम
धैर्यवान थे। उन्होंने हमेशा मुश्किल समय में धैर्य रखा।
सब राह चलत बलवानु, जो न
बैरी होइ।
3.
बुद्धि: श्री राम
बुद्धिमान थे। उन्होंने हमेशा सही निर्णय लिया।
बुद्धिर्हि भवति मूलं, सर्वस्यैव
सुखस्य।
4.
वत्सल्य: भगवान
श्री राम का वत्सल्य अतुलनीय था। वे अपने भक्तों और परिवारवालों के प्रति अत्यधिक
स्नेह और देखभाल करते थे।
साकेत महुँ पद
जाय बैकुंठ, सो अवस्था मान राजराज।
प्रान
प्यारिन्ह रघुपति दुत, जाकी सरनागत भव भज।।
5.
विनय: भगवान
राम का विनय अद्वितीय था। वे समस्त लोगों के प्रति विनम्र और विनीत रहते थे।
बाल ब्रह्म
विद्या बढ़ि गाथा, बाल बिबेक विनय अति नाथा।
जाको वचन
सुनिसि अपुनि जानी, जाको अनुरूप सकल बिधि दानी।।
6.
दया: श्री राम
एक दयालु व्यक्ति थे। उन्होंने
हमेशा दूसरों की मदद की।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
एते योऽसौ नरः सर्वे धर्मेण परिपालयन्॥
7.
अहिंसा: श्री राम
अहिंसा के उपासक थे। उन्होंने हमेशा हिंसा का विरोध किया।
अहिंसा परमो धर्मः, असत्यं
हिंसात्मिका।
8.
ज्ञान: श्री राम ज्ञानी थे। उन्होंने अपने गुरु वशिष्ठ से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने धर्म, दर्शन और
राजनीति के बारे में गहन ज्ञान प्राप्त किया।
ज्ञान बिनु बैकुंठ कैसे पाई, बिद्या
बिनु सुर दुर्लभ भाई।
9.
क्षमा: श्री राम
क्षमा करने वाले थे। उन्होंने हमेशा दूसरों को माफ किया।
करहिं बैरी त्यागि अज राखी, करहिं
सत्य न कहि आपु।
लखन बांधि सिर लगु न राखिहु, लाखन
बांधि राखि लायिहु॥
10.
धर्म: श्री राम
धर्म के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने हमेशा सत्य
और न्याय का पक्ष लिया। उन्होंने कभी भी किसी के साथ अन्याय नहीं किया।
धर्मो रक्षति रक्षितः, धर्मो
रक्षति धृतिम।
11.
सहनशीलता: श्री राम
सहनशील थे। उन्होंने हमेशा कठिन परिस्थितियों को सहन किया।
धैर्यं धृतिमावलंब्य, कर्माणि
कुरु यत्नतः।
12.
भक्ति: श्री राम
भक्त थे। उन्होंने हमेशा भगवान की भक्ति की।
भक्तिं वृद्धिं करोति, ज्ञानं
वृद्धिं करोति।
13. सत्य: भगवान
राम ने अपने जीवन में सदा सत्य का पालन किया। उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला और
आज्ञाओं का पालन किया।
सत्य सनातन धर्मा, सत्यमेव
जयते।
14.
आत्म-संयम: श्री राम
आत्म-संयमी थे। उन्होंने हमेशा अपने मन और भावनाओं पर नियंत्रण रखा।
आत्मसंयम साधनं, मोक्षस्य
च कारणम्।
15.
संतोष: श्री राम
संतोषी थे। उन्होंने हमेशा जो कुछ भी था उससे खुशी मनाई।
संतोषी धन्यः पुरुषः, सर्वत्र
सुखी संभवः।
16.
त्याग: श्री राम
त्यागी थे। उन्होंने हमेशा दूसरों के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।
राजधनी बिदार बर बार बिनु बरनि बर नारि जाय।
इन 16 गुणों के अलावा, श्री राम में कई अन्य दैवीय गुण भी हैं, जिनमें शामिल हैं:
1.
प्रेम: श्री राम
प्रेम के प्रतीक थे। उन्होंने हमेशा दूसरों से प्रेम किया।
2.
आस्था: श्री राम
आस्था के प्रतीक थे। उन्होंने हमेशा भगवान पर आस्था रखी।
3.
दृढ़ निश्चय: श्री राम
दृढ़ निश्चय के प्रतीक थे। उन्होंने हमेशा अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए
दृढ़ संकल्प किया।
4.
आत्मविश्वास: श्री राम
आत्मविश्वास के प्रतीक थे। उन्होंने हमेशा अपने आप पर विश्वास किया।
5.
उत्साह: श्री राम
उत्साह के प्रतीक थे। उन्होंने हमेशा जीवन में आगे बढ़ने के लिए उत्साह दिखाया।
6.
साहस: श्री राम
साहस के प्रतीक थे। उन्होंने हमेशा कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए साहस
दिखाया।
7.
विनम्रता: श्री राम
विनम्रता के प्रतीक थे। उन्होंने हमेशा दूसरों के साथ विनम्रता से व्यवहार किया।
8.
विनोद: श्री राम
विनोद के प्रतीक थे। उन्होंने हमेशा दूसरों को हंसाने के लिए अपना कौशल का
इस्तेमाल किया।
9.
सृजनशीलता: श्री राम
सृजनशीलता के प्रतीक थे। उन्होंने हमेशा नए और बेहतर तरीके खोजने के लिए अपना कौशल
का इस्तेमाल किया।
3. श्री राम की दैवीय संपदा का महत्व:-
श्री
राम की दैवीय संपदा उनके जीवन को एक आदर्श बनाती है। उन्होंने अपने गुणों के कारण
लोगों के दिलों में एक अमिट स्थान बनाया है। वे एक आदर्श पुरुष के रूप में पूजे
जाते हैं।
श्रीराम की दैवीय संपदा में भक्ति की अद्वितीयता
छिपी है। उनके भक्त हनुमान, भरत, शत्रुघ्न और
गुरु वशिष्ठ ने भगवान के पास विश्वास और भक्ति के साथ रहकर उनके लीलाओं को देखा और
उनकी महिमा को साक्षात्कार किया। उनके भक्तों के दृष्टि को राम के साथी और सेवक के
रूप में व्यक्ति त्व भावना ने भगवान की अत्यधिक प्रियता को दिखाता है।
4. श्री राम की दैवीय संपदा से प्रेरणा:-
श्रीराम की दैवीय संपदा में वीरता की उच्च
अद्भुतता है। उन्होंने वानर सेना के साथ हुए युद्ध में अपराजेय साहस और योद्धा
कौशल दिखाया। रावण के वध में उनकी अद्वितीय साहसी ने उन्हें एक महान योद्धा के रूप
में प्रसिद्ध किया। श्री राम की दैवीय संपदा से हमें प्रेरणा मिलती
है कि हम भी अपने जीवन में इन गुणों को अपनाएं। हम भी शौर्य, दया, ज्ञान, धर्म, सत्य
और प्रेम के मार्ग पर चलकर एक आदर्श जीवन जी सकते हैं।
श्रीराम का दयालु और न्यायप्रिय व्यक्तित्व उनकी
दैवीय संपदा का एक अहम हिस्सा है। उन्होंने अपने भक्तों की रक्षा करते हुए उनके
दुःखों को दूर किया और न्याय की भावना को सख्ती के साथ प्रकट किया।
चौपाई
“सीता
लखन सहित रघुराई। गाँव निकट जब निकसहिं जाई।।
सुनि सब बाल बृद्ध नर नारी। चलहिं तुरत गृहकाजु
बिसारी।।
राम लखन सिय रूप निहारी। पाइ नयनफलु होहिं
सुखारी।।
सजल बिलोचन पुलक सरीरा। सब भए मगन देखि दोउ
बीरा।।“
5. श्री राम की दैवीय संपदा का समाज पर प्रभाव:-
श्री
राम की दैवीय संपदा ने समाज पर एक सकारात्मक प्रभाव डाला है। उन्होंने लोगों को
अच्छे गुणों को अपनाने और बुरे गुणों से दूर रहने के लिए प्रेरित किया है। श्री
राम के आदर्शों को अपनाकर, हम एक बेहतर समाज बना सकते हैं।
6. निष्कर्ष:-
रामचरितमानस
भगवान श्रीराम की दैवीय संपदा का वर्णन एक अद्वितीय तरीके से करता है, जो
उनके व्यक्तित्व के अद्वितीय आयामों को उजागर करता है। उनकी भक्ति, वीरता, क्षमा, आदर्श
राजनीति और न्याय की भावना उनके चरित्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। रामचरितमानस से
हम श्रीराम के एक नेतृत्व पूर्ण और आदर्श जीवन के लिए प्रेरित हो सकते हैं। यह
ग्रंथ भारतीय संस्कृति का एक मौलिक हिस्सा है और सदैव हमें उत्तम मानवता की दिशा
में मार्गदर्शन करता रहेगा। श्री राम की
दैवीय संपदा से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम भी अपने जीवन में इन गुणों को अपनाएं।
चौपाई
“भगवान
राम की दिव्य संपदा अद्वितीय, अमूर्त अनुरूप।
भक्तों के दिलों में बसी, वह
जीवन का सार है रूप॥“